*माता जंगो रायतार का इतिहास*
*#गोंडी_सगा_देवों की माता #रायतार_जंगो का इतिहास*
👉माता जंगो *रायतार* के इतिहास *(जीवनी)* से संबंधित कोया वंशीय गोंड समुदाय में एक अलौकिक कथासार प्रचलित है।
प्रचीन काल में *अफ्रोकागुट्टा* कोर संभाग के परूंदली कोट (वर्तमान में जिसे कोटा परूंदली कहा जाता है) का शासक कोषाल पोय अपने राज्य के वन में वन विहार करने जाता है जहाँ पर कोषा पालन होता है। राजा कोषाल पोय उस वन में साजा और आंजन के पेड़ो का *निरिक्षण* करता है जिसमें कोषा पालन का व्यवसाय किया जाता है। तभी राजा की नजर एक साजा के पेड़ पर एक सुन्दर *कोशिका* पर पड़ी और उस कोशिका को देखकर राजा मोहित हो जाता है। राजा उस कोशिका को देखकर इतना मोहित हो जाता है कि उस कोशिका की मांग करने लगता है, वहां पर काम करने वाले कर्मी से, और उस कोशिका को माँगकर अपने *राजमहल* ले जाता है। कुछ समय बाद उस कोशिका से एक कन्या का जन्म होता है और वह कन्या बहुत ही सुन्दर और रूपवान होती है। राजा उस कन्या का नाम *(रायतार _ रायताड़ )*रखता है। गोंडी भाषा में रायतार का मतलब देवी होता है।
👉अब आप लोग विचार किये होंगे कि कोई भी *कोशिका* से एक कन्या का जन्म कैसे हो सकता है??? ये बात भी सही है कि कोई पेड़ या कोशिका से कोई भी बच्चे का जन्म हो ही नहीं सकता।
?? लेकिन इस बात पर हम कल्पना कर सकते हैं कि जब राजा कोषाल पोय उस वन पर गया होगा जहाँ पर कोषा पालन का व्यवसाय चलता था।
ये भी हो सकता है कि *परंदुली कोट* का गण्डप्रमुख अपने कोषा व्यवसाय के वनों का निरीक्षण करने जब गया होगा तब उसे साजा के पेड़ पर जो सुन्दर *कोषिका दृष्टिगोचर* हुई, वह वास्तव में कोषिका नहीं बल्कि वहां पर काम करने वाले किसी कर्मी की रूपवान कन्या थी, जिसकी सुंदरता को देखकर राजा मोहित हो गया हो और उसे अपनी रानी बनाने के लिये उसके पिता से मांग की हो और विवाह रचाकर अपने राजमहल में ले आया हो और उसी कोषिका रानी से रायतार का जन्म हुआ हो। इसलिये उसे 'कोषाल पुंगार रायतार कहा जाता है।
👉 जब *कोषिका* की कन्या रायतार युवा अवस्था में पदार्पण कर गई, तब राजा कोषाल पोय ने उसका विवाह *अदिल कोट* गण्डराज्य के *राजकुमार पडयोर* से कर दिया। किन्तु दुर्भाग्य से विवाह के दूसरे दिन ही उस राजकुमार का सर्पदंश के कारण मृत्यु हो गई। इस अनअपेक्षित घटना से रायतार पर दुःख का पहाड टूट पड़ा। रायतार के सास ससुर ने उसे अपने पति को खाने वाली कंकाली स्त्री संबोधित कर राजमहल से निकाल दिया। जिसके कारण वह रोते बिलखते अपने माता पिता के पास चली आई।
*👉 रायतार से जंगो रायतार का बनना-"*
कोया वंशिय गोंड समुदाय में प्राचीन काल में पति के मरणोपरान्त उसके पत्नी को घृणित एवं उपेक्षित निगाहों से देखा जाता था। रायतार को भी ऐसे ही कुप्रथाओं का सामना करना पड़ा। इसलिये उसने ऐसे परितक्ता स्त्रियों की सेवा करने का दृढ संकल्प किया। उसने अपने पिता के गण्डराज्य में नीलकोंडा पर्वतीय मालाओं के परिक्षेत्र में परितक्त स्त्रियों के लिए *“मन्दायरोन" (आश्रम)* की स्थापना की और उस स्थान का नाम “कंकाली जीवांना ठाना" ऐसा रखा। उसके पिताजी ने उसे जरूरत की सभी चीजों की परिपूर्ति की। उस आश्रम की पूरी व्यवस्था रायतार ने अपने हाथों में संभाल लिया और उस राज्य में जितने भी परितक्ता स्त्रियां थी उन्हें और उनके बच्चों को एकत्रित कर उनकी सेवा करने का कार्य आरंभ किया। उस जमाने में कोया वंशीय गण्डजीवों के समुदाय में ऐसी प्रथा थी कि यदि किसी अविवाहित कन्या से किसी प्रकार का अनैतिक कार्य हो जाय अथवा बिना विवाह किए शारीरिक यौन संबंध से गर्भधारणा हो जाय तो उसे कंकाली या कलंकिनी संबोधित किया जाता था। उसे समाज द्वारा बहिष्कृत कर उसके माता पिता के घर भेजा दिया जाता था तथा समाज से ही *पृथक* कर दिया जाता था। यदि ऐसे कंकालियों को उनके माता पिताओं ने अपने घरों में आसरा प्रदान किया तो उन्हें भी समाज से बहिष्कृत किया जाता था। विधवा स्त्रियों को अपने पतिदेव को खानेवाली स्त्री समझकर घर से बाहर निकाल दिया जाता था। उसी तरह छोटे बच्चों के माता पिता की *मृत्यू* हो गई तो, उन्हें “मोईनोर छव्वांग"
अर्थात अपने माता पिता को खाने वाले बच्चे ऐसा समझकर उन्हें भी घृणित नजरों से देखा जाता था।
कोया वंशीय गण्डजीवों के समुदाय में प्रचलित कुप्रथाओं का शिकार स्वयं रायतार भी हो चुकी थी। इसलिये उसने अपने गणराज्य के कंकाली तथा विधवा स्त्रियों और मोयनोर (बिना माता के) बच्चों को एकजगह अपने आश्रम में जमा करके उनकी सेवा करने का कार्य आरंभ किया। सभी कंकाली और घृणित स्त्रियां रायतार जंगो के “मन्दायरोन" में रहकर अपने जीवनोपयोगी संसाधनों का उपयोजन कर जीवन निर्वाह करती थी। वे सभी स्त्रियां रायतार की सेविका बनकर समाज से घृणित निष्कासित बच्चों की देखभाल करती थी। वहां रहने वाले सभी कंकाली स्त्रियां और मोयनोर बच्चों की कोयावंशीय गण्डजीवों के समुदाय में उचित एवं सम्मानजनक स्थान प्राप्त हो इसलिये रायतार ने अपने सेविकाओं के साथ समुदाय में वैचारिक जंगोम (क्रान्ति) आरंभ किया। जंगोम इस गोंडी शब्द का अर्थ जागृति एवं क्रान्ति ऐसा होता है। रायतार को इसी वैचारिक कार्य के लिए “जंगो रायतार" अर्थात जागृति एवं क्रान्ति की देवी कहा जाने लगा। आगे चलकर वह जंगो रायतार के नाम से विख्यात हुई।
जंगो रायतार ने अपने तर्कपूर्ण विचारों से कोया वंशीय समुदाय के गण्डजीवों को समझाना आरंभ किया कि कंकाली स्त्रियां और मोयनोर बच्चे भी कोया वंशीय समुदाय के ही देन है और इसी समुदाय के गण्डजीव ही उन्हें कलंकित एवं मोयनोर जीवन प्रदान करते है। यदि किसी कुवारी कन्या से कोई अनैतिक घटना घटित होती है तो उसके जिम्मेदार भी समुदाय के ही लोग होते हैं और ऊपर से उन्होंने ही ऐसे कन्याओं को कलंकित कहना या घृणित निगाह से देखना कदापि *न्यायसंगत* नहीं है। उसी तरह किसी विवाहिता का पति मर जाता है तो उसमें उस पत्नि का क्या दोष है? यदि कोई बच्चा जन्म लेते ही उसके माता पिता मर जाते हैं तो इसमें उस बच्चे का क्या दोष है? यदि कोया वंशीय समुदाय के गण्डजीवों को उनकी स्त्रियां कंकाली अथवा विधवा और बच्चे मोयनोर नहीं होना चाहिए ऐसा लगता है, तो उन्हें सर्व प्रथम अपने आपको अमर बनाना चाहिए। प्रथम अमरत्व प्राप्त करके ही उन्हें इस समुदाय में जन्म लेना चाहिए। जो समुदाय नश्वर गण्डजीवों को जन्म देता है ऐसे विधवा स्त्रियों तथा मोयनोर बच्चों को दोष देने का, उन्हें घृणित निगाह से देखने का कोई अधिकार नहीं। जंगो रायतार के ऐसे विवेकपूर्ण एवं तर्कसंगत विचारों से कोया वंशीय समुदाय के गण्डजीवों में वैचारिक जागृति निर्माण हो गई। सभी लोग रायतार को जंगो रायतार दाई के रूप में मानने लगे।
हर गाँव में जाकर जंगो रायतार ने लोगों में वैचारिक जागृति निर्माण करने का कार्य किया। कोया वंशीय समुदाय के *गण्डजीवों* के लिए उसने कुछ नये नियम बनाये जो निम्नानुसार हैं-
1. कोया वंशीय समुदाय में कन्या का एक बार विवाह हो जाने पर वह जिस कुल में *बिहाई* जाती है, वह उस कुल की वधु बनी रहेगी। उसके पति के मरणोपरान्त भी वह विधवा नहीं कहलाएगी बल्कि कुल वधु ही कहलाएगी। पति के मरणोपरान्त उसका यदि छोटा *देवर (सरंडू)* है, तो उसके साथ उसका पाठ (उपविवाह) लगाया जाना चाहिए। यदि देवर सज्ञान नहीं है, तो उसी कुल से उसका विवाह अन्य कुल में करा देना चाहिए। यदि वह बाल बच्चों वाली है तो उसकी पूरी जिम्मेवारी उसी कुल के लोगों द्वारा उसका और उसके बच्चों का सम्मान के साथ परवरिश किया जाना चाहिए।
2. *कुंवारी कन्याओं* के हाथ से यदि कुछ अनैतिक घटना घटित हो जाने पर समुदाय के पंचों को उससे प्रेम से पूंछतांछ करना चाहिए और उस घटना के लिए जो कोई भी जिम्मेदार हो उसके साथ उस कन्या का विवाह करा कर उसे सामुदायिक मान्यता प्रदान करना चाहिए।
3. बिना माता पिता के *बच्चों* को भी घृणित नजरों से नहीं बल्कि प्रेम भाव से देखा जाना चाहिए। उनके परवरिश की जिम्मेवारी वे जिस कुल के हैं, उस कुल के लोंगों को उठाना चाहिए। यदि उस कुल में कोई नहीं है, तो उनके परवरिश की जिम्मेदारी कोया वंशीय समुदाय को लेना चाहिए।
👉इस तरह के *सामुदायिक* नियम बनाकर जंगो रायतार ने *कोटा परंदुली गण्डराज्य* के कोया वंशीय गण्डजीवों में उनका प्रचार एवं प्रसार किया। इसके अतिरिक्त सम्पूर्ण कुयवा राज्य में एक वैचारिक जागृति लाने का उसने बीड़ा उठा लिया था। सभी लोग उसे सम्मान के साथ जंगो रायतार याने क्रान्ति की देवी कहा करते थे।
👉आंगे चलकर *जंगो रायतार दाई* ने माता कली कंकाली की मदद की और पहांदी पारी कुपार लिंगों एवं हीरासुका की सहायता से 33कोट बच्चों को कोया पुनेम की शिक्षा प्रदान करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जिससे जंगो रायतार गोंडी सगादेवों की माता भी कहलाने लगी।
___________________________________
*धन्यवाद*
*📝आपका अपना*
*कोयतूर सुबु _ रावेन मर्सकोले*
*गोंड युवा प्रकोष्ठ बालाघाट मध्यप्रदेश*
*💐सेवा 💐 सेवा 💐सेवा 🙏 जोहार*
0 टिप्पणियाँ