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शंभू महादेव/ महादाऊ 🙏

प्रथम पंक्ति में चावल के मूठ पर संभू गौरा के प्रतिक को रखा जाता हैं, क्योंकि उसके ही मार्गदर्शन में गोंडी सगा देवो की नियुक्ति रूपोलंग पाडी पहांदी कुपाड़ लिंगों ने की थी।

दूसरे पंक्ति में चावल के पांच मूठ रखकर उन पर कुपाड़ लिंगो के द्वारा कोइतूरो को सगा युक्त शाखाओं में संरचित करने हेतु जिन पांच भूमकाओं की नियुक्ति की गई थी उनको १. नारायणसुर (नारायण पेन),२. कोलासुर (कालापेन),३. हिराजोती (जाखा राज),४. मानकों सुंगाल(माटयाल पेन),५. तूरपो राय (तलवार शक्ति पेन) के रूप में विभाजित किया जाता हैं।

तीसरे पंक्ति में चावल के मूठ रखकर लिंगों चूड़ा को पहले रखकर उसके बाद परिवार के सगा पेन रखें जाते हैं। इन्ही चुडुर पेन की संख्या से वह परिवार कितने देवो के सगा शाखा से संबंधित है, इसकी जानकारी होती हैं।
लिंगों का चूड़ा इस बात का प्रतिक है कि उसने कोइतुरो को एक गोंदोला में अनुबंधित करने का कार्य किया है, इसलिए उसके नाम से एक चूड़ा स्थापित किया जाता हैं। जिसे सकलहाई या संकलकर्ता देव कहा जाता हैं।

उक्त सभी देवों की निर्मिती एक विशेष विधि विधान में कुंवारी लोहे से की जाती हैं, जिसे गोंड समुदाय ओतारी या वतकारी क्रिया कहते हैं। सूरज नारायन पेन का प्रतिक मात्र शंख या सिंगी के रूप में होता हैं।

इसके अतिरिक्त प्रत्येक कोइतुरो के घर में धन बाई, धन ठाकुर, गाथा पीठ, माई (दाई) शक्ति पीठ आदि स्थापित होती हैं। जिन्हे सुबह शाम भोजन करने से पहले छिटकी (विदुर कियाना गोंगो ) किया जाता हैं।
                     इस तरह गोंडी/कोइतूर सगा देवो की संरचना से कोइतूर सगा वेनो (व्यक्ति) की पहिचान होती हैं।

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