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शंभू पेन ठाना / महादेव का असली स्थान

पचमढी, 
असली गोण्डी नाम पेन्क मेढ़ी 
"" संभू पेन ठाना है 
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गोण्डी पाटा गोण्डी गाथाओं के अनुसार 
हमारे अरूरूम संभू पेन का मुख्य निवास स्थान यही पेन्क मेढ़ी था , यही से संभू 
पंच खंडीय गोण्डवाना भूमि पर अपना अधिपत्य चलाते थे ( यानी यह सभी संभू का हेड आफिस था ) ,इसलिए पूरे पचमढी जेगल छेत्र में सिर्फ गोण्डी समाज गोण्डी बोली के साथ निवास करते थे 
यहाँ के आखिरी गोण्डी राजा * भावुत सिंग गोण्ड थे, जो , गढ़ मंडला रियासत के 52 गढ़ो के आधीन यह छेत्र भी था 
,
 गोण्डी संस्क्रति इतिहास की तबाही की शुरुआत 
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1862 मे , ब्रिटिश कैप्टन जे फरसोथ पचमढी आए और यहाँ घने जंगल, नदियाँ, और हिम आच्छादित पर्वत देख मंत्रमुग्ध हो गये , उन्होंने इसे पर्यटन स्थल बनाने का निर्णय लिया ताकि विदेशी मेहमानों को यहाँ इंटरटेनमेंट करवाया जा सके 
इसके लिए जरूरी था यहाँ से सैकड़ों गोण्डी बस्तियों को हटाना ,
क्योंकि गोण्ड -
  जानवरों को चराते ,लकड़ी बीनते ,वन औषधि बीनते पूरे जंगल में स्वच्छंद विचरण करते थे 
उन्होंने गोन्डो को हटा 
इसे पर्यटन स्थल बनाया , सभी रेस्ट हाऊस होटेल की कमान अंग्रेजों के हाथ थी 
गोन्डो को उनके पूजा स्थल से भगा कर खुद के पूजा के लिए चर्च की स्थापना की 
और इस तरह 
लाखों साल पुरानी गोण्डी पुरखा संस्क्रति को दफन करने की अमानवीय कोशिशें की गयी 
अंग्रेजों के जाने के बाद 
पूरे पचमढी के होटलों, रैस्टोरेंट, लाज,शापिंग सेन्टर दीकुओ के कब्जे में है 
हमारे सैकड़ों संभू पेन ठाना मै ब्राह्मण का कब्जा है और पचासों हिन्दू मंदिर , मस्जिद का निर्माण हो गया है 
यहाँ के गाइड 
वेद पुराण रामायण की काल्पनिक कहानियां सुनाते हैं , हा हा हा हा हा हा हा 
मैंने कहा फालतू की बकवास बंद करो यह मेरा पेन ठाना है 
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नीम्बू पानी पीते समय ,
लोगों ने बताया है कि अभी भी कुछ गोण्डी गांव को हटाया यानी गोन्डो को भगाया गया है ,जिसका जिक्र किसी मीडिया, समाचारपत्र मे नही है 
और
उस भूमि का मालिक गोण्ड , गैर गोन्डो के घर और दुकानों पर मजदूरी करता है 
जिन गोन्डो के दिमाग में, हमारे पेन स्थलों को पर्यटन स्थल बनाने का भूत सवार है वे एक बार पचमढी जा कर अपनी संस्क्रति की तबाही जरूर देखें 
मै बार बार यहाँ जाती हूँ क्योंकि यह मेरे संभू का पेन ठाना है, दूसरे मंदिर के दर्शन नहीं करती ना ही दान पेटी मे कुछ डालती हूँ 
सभी चित्र 
30,31, अगस्त 2021 पचमढी ( मध्यप्रदेश ) भ्रमण के हैं 
संभू मादाव मूला मादाइ ता 
सेवा सेवा जोहार - 

लेखिका-
सुशीला धुर्वे 

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