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विश्व आदिवासी दिवस समारोह जिला बालाघाट (चरेगांव)

विश्व आदिवासी दिवस समारोह जिला बालाघाट (चरेगांव)....

 विश्व आदिवासी दिवस क्या है ?

          द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पूरे विश्व में शान्ति स्थापना के साथ-साथ विश्व के देशों में पारस्परिक मैत्रीपूर्ण समन्वय बनाना, एक-दूसरे के अधिकार एवं स्वतंत्रता को सम्मान के साथ बढ़ावा देना, विश्व से गरीबी उन्मूलन, शिक्षा एवं स्वास्थ्य के विकास के उद्देश्य से 24 अक्टूबर 1945 में "संयुक्त राष्ट्र संघ" का गठन किया गया, जिसमे अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, भारत सहित वर्तमान में 193 देश सदस्य हैं।
 अपने गठन के 50 वर्ष बाद "संयुक्त राष्ट्र संघ" ने यह महसूस किया है कि 21 वीं सदी में भी विश्व के विभिन्न देशों में निवासरत जनजातीय (आदिवासी) समाज अपनी उपेक्षा, गरीबी, अशिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा का अभाव, बेरोजगारी एवं बंधुआ मजदूर जैसे समस्याओं से ग्रसित हैं. जनजातीय समाज के उक्त समस्याओं के निराकरण हेतु विश्व के ध्यानाकर्षण के लिए वर्ष 1994 में "संयुक्त राष्ट्र संघ" के महासभा द्वारा प्रतिवर्ष 9 अगस्त को *"INTERNATIONAL DAY OF THE WORLD'S INDIGENOUS PEOPLE"* विश्व आदिवासी दिवस मनाने का फैसला लिया गया. तत्पश्चात पूरे विश्व यथा अमेरिकी महाद्वीप, अफ्रीकी महाद्वीप तथा एशिया महाद्वीप के आदिवासी बाहुल्य देशों में 9 अगस्त को "विश्व आदिवासी दिवस" बड़े जोर-शोर से मनाया जाता है, जिसमे भारत भी प्रमुखता से शामिल है.



भारत में निवासरत आदिवासियों के सर्वांगीण विकास के लिए भारत के संविधान में किए गए प्रावधान



          वर्ष 1947 में भारत के स्वतंत्रता पश्चात भारत के लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था चलाने के लिए संविधान का निर्माण किया गया, जिसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया. संविधान में कुल 22 भाग, 12 अनुसूची एवं 395 अनुच्छेद हैं. इनमे से सर्वाधिक अनुच्छेद- अनुसूचित जनजातियों (आदिवासियों) के हित संरक्षण के लिए हैं, जिनमे निम्न मुख्य हैं :-



(१) अनुच्छेद 366 में - अनुसूचित जनजातियों को परिभाषित किया गया है.



(२) अनुच्छेद 342 में - पूरे भारत के प्रत्येक राज्य में निवासरत आदिवासी (अनुसूचित जनजाति) जातियों की सूची घोषित किया गया है.



(३) अनुच्छेद 244(1) में - अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन एवं नियंत्रण के बारे में उपबंध हैं.



(४) अनुच्छेद 244(1)5 - में अनुसूचित क्षेत्रों को लागू विधि (क़ानून) का स्पष्ट प्रावधान है अर्थात इन क्षेत्रों में भूमि का अंतरण और आवंटन, बैंकिंग सिस्टम, शान्ति एवं प्रशासन इत्यादि संबंधी प्रशासनिक कार्य गैर आदिवासी क्षेत्रों से अलग होगा.



(५) अनुच्छेद 244(1) - अंतर्गत 73 वाँ संविधान संशोधन द्वारा पांचवी अनुसूची पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम 1996 पेशा क़ानून के तहत अनुसूचित क्षेत्रों के अंतर्गत आने वाले सभी ग्राम पंचायतों के सरपंच पद एवं जनपद/जिला पंचायतों के अध्यक्ष पद तथा उक्त पंचायतों के कुल 50 प्रतिशत से अधिक पंच/जनपद सदस्य/जिला पंचायत सदस्य के लिए आरक्षित हैं. इसी प्रकार अनुसूचित क्षेत्रों में लागू अन्य क़ानून जैसे- कृषि उपज मंडी/को-आपरेटिव एक्ट, जल उपभोक्ता संस्था एक्ट, वन प्रबंधन समिति एक्ट, स्थानीय स्वशासन (नगर पंचायत/नगर पालिका परिषद/नगरपालिक निगम एक्ट) में भी आरक्षण लागू होना चाहिए.



(६) अनुच्छेद 14 में समता के अधिकार के तहत जनजातीय समाज को न्याय दिलाने के लिए विशेष प्रावधान हैं जैसे- अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 में शोषण के विरुद्ध संरक्षण के विशेष प्रावधान हैं.



(७) अनुच्छेद 14(4) में - अनुसूचित जनजातियों के साथ धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करने का प्रावधान हैं तथा इनके उन्नति के लिए विशेष उपबंध (आरक्षण) बनाने का प्रावधान हैं.



(८) अनुच्छेद 16(4) में - अनुसूचित जनजातियों के लिए शासकीय नौकरियों एवं पदों में जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने का प्रावधान है.



(९) अनुच्छेद 23 में - मानव का व्यापार, जबरन काम कराना इत्यादि शोषण के विरुद्ध रक्षा का प्रावधान है.



(१०) अनुच्छेद 275 में - अनुसूचित जनजातियों के कल्याण तथा अनुसूचित क्षेत्रों के विकास के लिए भारत की संचित निधि से राज्य सरकार को अनुदान राशि देने का प्रावधान है.



(११) अनुच्छेद 330 में - विधान सभा एवं 332 में - लोकसभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान है.



(१२) छत्तीगढ़ भू-राजस्व संहिता 165 एवं 170(ख) के अनुसार अनुसूचित क्षेत्र एवं अनुसूचित जनजातियों की भूमि को गैर आदिवासी द्वारा अंतरण नहीं किया जा सकता. अर्थात छलपूर्वक खरीदी-बिक्री या भू-अर्जन नहीं किया जा सकता.



(१३) छत्तीसगढ़ को-आपरेटिव सोसायटी एक्ट 1960 की धारा-48(ख) के कंडिका 2(क) अनुसार "किसी सोसायटी में जहां सदस्यों कि कुल संख्या के कम से कम आधे सदस्य अनुसूचित जनजातियों के हैं, वहाँ ऐसा प्रतिनिधि केवल जनजातियों के सदस्यों में से होगा."



(१४) आदिवासियों के सर्वांगीण विकास के लिए भारत के जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा जुलाई 2006 में "राष्ट्रीय जनजातीय नीति" बनाई गई है.




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