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कोयामुर्री दीप के कोयावंशीय /कोइतूर gandjivo को कुल बारह सगाओं और 750 गौत्रों में विभाजित प्रत्येक के लिए सय्युगगार दीप के पशु, पक्षी और वनस्पतियों की सूची बनाई गई और 750 गौत्र नाम तैयार किए गए। *प्रथम सात सगाओं के हर एक सगाओं के लिए 100-100 ऐसे 700 गौत्र विभाजित किए गए तथा 8 से 12 तक कुल 5 सगाओं को हर एक को 10 -10 गौत्र प्रदान किए गए। इस प्रकार 7×100=700 तथा 5×10=50 , 700+10=750 कुल/गौत्र हुए।*
*प्रकृति के संतुलन बनाए रखने के लिए धरती के प्रथम महान वैज्ञानिक रूपोलंग पाडी पहांदी कुपाड़ लिंगो ने हर एक सगा गौत्र धारक को एक प्राणी (पशु), एक पक्षी और एक वनस्पति ऐसे 3 गौत्र चिन्ह (टोटेम या टाइटल) उन सगाओं के गुण व स्वभाव के अनुसार प्रदान किए गए और सभी को अपने अपने गौत्र चिन्ह (टोटेम/टाइटल) अनुसार संबंधित जीव सत्वों की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई।*
*कोइतूर gandjivo को एक गोंदोला यानि कि समुदाय में अनुबंधित करने से वे गोंदोला निवासी गोंड बनें।*
*उनका सगा वेन घटक विभाजित होने से वे गोंदोला के गोंडी सगावेन बनें (वेन याने जीवित व्यक्ति को कहते हैं।)।*
*और गोंडी सगावेनो की जो जीवन प्रणाली प्रस्थापित की गई उसे ही गोंडी पुनेम कहते हैं और गोंडी पुनेम (धर्म) को मानने वाले लोगों को गोंड और गोंड लोगों के निवास स्थान या धरती को *गोंडवानालैंड* कहा गया।
*वर्ण व्यवस्था से पहले गोंडवाना मे रहने वाले सभी मानव जाति (st,.sc.,obc.) गोंड थे।*
*गोंडवाना शब्द जातिवाचक नही, अपितु प्रजावचक हैं।*
*यह कबिलाई गंडव्यवस्था/गौत्र व्यवस्था सभी आदिम जनजातियों में विद्यमान हैं और सभी के गौत्र चिन्ह (टोटेम/टाइटल) होता हैं इसलिए सभी के पुनेम (धर्म) को एक शब्द में कोयापुनेम कहा गया है।*
*कोयापुनेम को मानने वाले लोगों के विशाल समुदाय को कोइतूर कहा गया और उनके निवास स्थान को कोयामुर्री दीप कहा जाने लगा।*
*कोइतूर गंडजीवों की गोंदोला व्यवस्था के 750 गोत्रों के लोग अपने गौत्र चिन्ह (टोटेम/ टाइटल) से संबंधित प्रकृति के जीव तत्वों (पशु, पक्षी, पौधा/पेड़) का एक ओर सुरक्षा भी किया करते हैं तो वही दूसरी ओर जो अन्य जीव सत्व है उनका भक्षण भी करते हैं। कोइतूर/गोंड सभी जीव सत्वों जैसे पशु, पक्षी, पौधा/पेड़ को बराबर मानता है। इन सभी में जान/जीवन हैं इसलिए ये सभी जीवित हैं। कोइतूर लोग हिंसा और अहिंसा को नहीं मानता बल्कि वह इन दोनों में सामंजस्य स्थापित कर जीवन जीता है। उसके लिए एक पशु भी उतना ही महत्त्व रखता है जितना कि एक पेड़ पौधा और एक पेड़ जितना महत्त्व एक पक्षी के जीवन का भी है। उसके लिए ये तीनों बराबर महत्त्व रखते हैं। प्रकृति को संचालित करने में इन तीनों का महत्त्व बराबर का हैंइसलिए किसी के बहकावे में नहीं आना है कि सिर्फ पशु , पक्षी (मुर्गा) की हत्या ही हिंसा हैं। हमारे लिए तो पशु,पक्षी और पेड़ तीनों ही पूज्यनीय, वंदनीय और आराध्य सदियों से रहें हैं।*
*आदिम जनजातिय समुदाय से दुनिया को आज भी बहुत कुछ सीखने की जरूरत हैं।*
इस तरह प्रकृति का संतुलन बनाए रखने के लिए *प्रकृति के बैलेंसवाद पर आधारित परा वैज्ञानिक सिध्दांत* रूपोलंग पाडी कुपाड़ लिंगों का कोयापुनेम या गोंडी पुनेम दर्शन कितने उच्च कोटी के मूल्यों से परा विज्ञानवाद से परिपूर्ण हैं। आप खुद समझ सकते हैं।
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