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गोंडवाना घड़ी

 ग्रहों की 🌾🌾🌾🌾🌾दिशा पर

चलने वाली✌️ घड़ी।        











          गोंड आदिवासी समाज यह मानता है कि सम्पूर्ण सृष्टि बड़ादेव का स्वरुप है. सृष्टि की उत्पत्ति एवं विनाश का स्वरुप ही बड़ादेव है. वह सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वशक्तिमान है. सृष्टि के समस्त गृह-नक्षत्र बड़ादेव की शक्ति से ही स्थापित हैं एवं बड़ादेव की शक्ति से ही वे पुकराल में अपने पथ पर करोडों वर्षों से निरंतर संचलन कर रहे हैं, जिसके कारण सृष्टि अपने अस्तित्व को बनाये रखी है. सामान्य घड़ी की विपरीत दिशा में पुकराल के गृह-नक्षत्रों के संचलन की यह प्रक्रिया पुकराल/सृष्टि/प्रकृति संचलन का विधान/नियम बन गया. इस विधान/नियम की सीख सम्पूर्ण मानव समाज को ग्रहण करनी चाहिए.*


          "गोंडवाना समयचक्र" पुकराल/सृष्टि/प्रकृति संचलन के अनुरूप मानवीय संस्कारिक शोध का परिणाम है. इसका निर्माण सामान्य घड़ी से किया जाता है तथा सामान्य घड़ी की विपरीत दिशा (Anti-Clock Wise) घूमता है. प्रकृति की दिशा अथवा सामान्य घड़ी की उलटी दिशा में घूमने के कारण इसे "प्राकृतिक घड़ी" या "उलटी घड़ी" भी कहते हैं. यह घड़ी गोंड आदिवासी समाज के प्राकृतिक तथ्यपरख, पारिवारिक, सामाजिक व सांस्कारिक विधानों की दिशा का अनुगमन करती है. इसलिए इसे सामान्यतः "गोंडवाना समयचक्र" या "गोंडवाना घड़ी" कहते हैं.


          मानव ने इस धरती पर अपनी विकासयात्रा में जो भी प्रकृति प्रदत्त ज्ञान प्राप्त किया उसे अपने जीवन के प्रत्येक कार्य एवं व्यवहार में अपनाया. आदिम महामानवों द्वारा मानुष को मनुष्य बनाने हेतु पुकराल के नैसर्गिक तथा सैद्धांतिक प्रक्रियाओं को जीवन के विभिन्न पड़ावों में पारिवारिक, सामाजिक व सांस्कृतिक स्वरुप में मानव जीवन जीने का विधान तैयार किया गया. इस विधान के अंतर्गत उन्होंने मनुष्य जीवन के प्रत्येक चरण में एक वास्तविक प्राकृतिक मानवीय संस्कारों के बीज बोये. आदिम संस्कार प्रकृति की वास्तविक संरचना के संतुलन नियम से जुड़े होने के कारण आज भी प्रकृति के मूल सिद्धांत आदिम समाज के संस्कारिक कार्यों में नीहित है. पुकराल/प्रकृति/सृष्टि की संरचना तथा संचलन के सिद्धांत के अनुरूप मानवीय संस्कारों का दर्शन ही गोंडवाना समयचक्र के संचलन का मुख्य आधार है.


          गोंडवाना समयचक्र गोंड आदिवासियों को ही नहीं सम्पूर्ण मानव जाति को सृष्टि के विधान के अनुरूप सांसारिक एवं सांस्कारिक जीवन जीने की सीख देती है. आज विकास के अंधे दौड़ के कारण सम्पूर्ण मानव जाति जानबूझकर या अन्जाने में अमानवीय तरीके से सृष्टि को गंभीर क्षति पहुंचा रहा है. बढते मानवीय सुख के साधन की लालसा तथा घटते प्रकृतिक संसाधनों से प्रकृति का पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ रहा है. इस बिगड़ते प्राकृतिक पर्यावरणीय संतुलन का भयावह परिणाम आज दुनिया के सामने परिलक्षित होना शुरू हो गया है. सृष्टि के संचलन नियम को मानव द्वारा अपने कार्मिक, धार्मिक, सामाजिक, सांस्कारिक व्यवहार के रूप में अपनाकर संयमित जीवन जीने की कला की जाग्रति हेतु सम्पूर्ण मानव समाज को सन्देश देना ही "गोंडवाना समयचक्र" के निर्माण का मूल मकसद है.


          अतः आदिम सभ्यता के संवाहक आदिवासी (गोंड) समुदाय की प्राकृतिक व संस्कारिक जीवन व्यवहार को हम निम्न स्वरूपों में दर्शन व अध्ययन कर सकते हैं, जो सामान्य घड़ी की विपरीत दिशा (Anti-Clock Wise) में संम्पन्न होते हैं :-


(१) प्रकृति में गतिमान ग्रहों-नक्षत्रो की चलने की दिशा-



पुकराल/ब्रम्हांड 

          "गोंडवाना समयचक्र" की चलने की दिशा विश्व में प्रचलित सामान्य समयचक्र (घड़ी) की दिशा के विपरीत है. यह एक प्राकृतिक एवं वैज्ञानिक तथ्य है की पुकराल में गतिमान ग्रहों-नक्षत्रों की संचलन की दिशा सामान्य घड़ियों की चलने की दिशा के विपरीत (Anti-Clock Wise) है. पुकराल को सतत रूप से अपने प्रभाव में रखने वाले ऐसे ग्रहों-नक्षत्रों की चलने की दिशा का अनुगमन करने वाला गोंडवाना समयचक्र है, जिसकी चलने की दिशा को ग्रहों कि चलने की दिशा की ओर निर्धारित किया गया है. चूंकि यह समयचक्र (घड़ी) पुकराल के ग्रह-नक्षत्रो की घूमने की दिशा में पप्रवाहित है, इसलिए इसे हम "प्राकृतिक समयचक्र" या प्राकृतिक घड़ी भी कहते हैं. पुकराल में गतिमान समस्त ग्रह, उपग्रह, उल्का, तारे सभी सूर्य के चारो ओर गुरुत्वाकर्षण-प्रतिकर्षण शक्ति से एक निश्चित दूरी पर गोलाकार रूप में अपनी कक्षा में दाएँ से बाएँ अनंतकाल से निरंतर चक्कर लगा रहे हैं तथा अपने पथ से कभी विचलित नहीं हुए न होंगे.


          यदि पुकराल के ये सभी ग्रह-नक्षत्र अपनी कक्ष से थोड़ा भी विचलित हुए तो इसका प्रभाव प्रकृति और समस्त प्राणीजगत पर पड़े बिना नहीं रहेगा, जिसे प्राकृतिक आपदा या विनास की गति कहा जा सकता है. इसलिए पुकराल अपने विनास को रोकने के लिए संरक्षात्मक रूप से उनके संचलन के लिए बने हुए नियमों के अनुरूप ही गति/संचलन करते हैं तथा पुकराल के संचलन चक्र को संतुलित करते हुए सृष्टि के जीवनकाल का संरक्षण करते हैं. इसी संचलन की संतुलित प्रक्रिया के कारण ही पुकराल करोडोँ वर्षों से स्थिर बचे/बने रहने का एक उदाहरण है. इसी प्रकृति से प्राणी जगत का अटूट सम्बन्ध है. अतः गोंडवाना समयचक्र को ग्रहों के संचलन की दिशा में घुमाने की तकनीकी प्राकृतिक रूप से ग्रहों की चलने की दिशा से अभिप्रेरित है, जिससे मानव संयमित, नियमित, प्राकृतिक जीवन व्यवहार को अपनाकर लंबी जीवन जीने की प्रेरणा ले सके.


(२) प्राकृतिक संसाधनों के व्यवहार के अनुरूप मानवीय क्रियाओं का संबंध-


          गोंडवाना समयचक्र की चलने की दिशा का मानवीय क्रियाओं से रचनात्मक, सांसारिक व सांस्कारिक सम्बन्ध है. प्रकृति मानव को मानवीय क्रियाओं के लिए प्रेरित करता है, जिसे मानव प्रकृति के नियमों के अनुरूप सत्य, संयमित और नियमित जीवन पद्धति को अपनाए. प्रकृति की सांस्कारिक जीवन प्रक्रियाओं को सामान्य घड़ी की चलने की विपरीत दिशा में चलने वाली गोंडवाना समयचक्र की दिशा का मानव द्वारा अपने सांस्कारिक जीवन व्यवहार में अपनाए जाने वाले मानवीय क्रियाओं से सम्बन्ध निम्नानुसार हैं :-


(क) किसानों के कार्य सामान्य घड़ी की विपरीत दिशा (Anti-Clock Wise) में-



किसानों द्वारा खेत जोतने का कार्य 

          यह सांस्कारिक रूप से सत्य है कि किसानो के द्वारा खेती के कार्य के लिए अपनाए जा रहे समस्त कार्य सामान्य घड़ी की चलने की दिशा (Clock Wise) के विपरीत दिशा (Anti Clock Wise) में ही संपन्न किये जाते हैं. जैसे- बैल चलित हल से जुताई का कार्य, दावन चलाना, गाड़ी, बेलन द्वारा बैलों के माध्यम से धान की मिंजाई करना आदि. ट्रेक्टर तथा अन्य मशीनों से भी इसी दिशा का अनुगमन कर खेत जुताई, फसलों की बोवाई, रोपा लगाई, कटाई, मिंजाई आदि खेती के कार्य किये जाते हैं. किसानों के घर में धान से चावल निकालने हेतु एक विशेष प्रकार का यन्त्र जिसे कोदो अनाज के छिलके को गीली मिट्टी में मिलाकर बनाया जाता है. इस यन्त्र को "जाता" कहा जाता है. "जाता" दो भागों में विभक्त होता है. निचला हिस्सा ऊपर के हिस्से से पतला होता है तथा इसके ऊपर के हिस्से को बीचोंबीच व्यवस्थित करने हेतु एक मजबूत लकड़ी का खूंटा लगाया जाता है, जिसके सहारे ऊपर का हिस्सा घूमता है. जाता के ऊपर के हिस्से पर भी हल के आकार का लकड़ी का हत्था लगाया जाता है. इस लकड़ी के हत्थे के बीचोबीच छेद बनाकर नीचे के हिस्से में लगे खूंटे को व्यवस्थित किया जाता है, जिसके सहारे ऊपर के हिस्से में लगे लकड़ी के हत्थे को पकड़ कर घुमाया जाता है. जाता को उसके खोल में धान, कोदो, कुटकी, मडिया आदि छिलके वाले अनाज डालते हुए दाएँ से बाएँ (Anti-Clock Wise) घुमाया जाता है. इस प्रक्रिया से दले जाने वाले अनाज का छिलका निकल कर चांवल में परिवर्तित हो जाता है. उसी प्रकार प्रकार चावल से आटा बनाने हेतु जाता से छोटे आकार में पत्थर की चक्की बनाया जाता है. चक्की के द्वारा आटा, दाल, बेसन पीसा जाता है. इन दोनो यंत्रो की मुख्य विशेषता यह होती है कि पीसने या दलने का कार्य करते समय इन्हें हाथ से (Anti-Clock Wise) ही घुमाया जाता है. यदि इन्हें (Clock Wise) घुमाया जाता है तो पीसे जाने या दले जाने वाला अनाज पिसकर बाहर निकलने के बजाय चक्की के अंदर ही सिमटता है. आज भी दूरस्थ जनजातीय क्षेत्रों में जहाँ बिजली या इंजन चलित चांवल या आटा निकलने की मशीन नहीं हैं वहाँ ये मिट्टी और पत्थर के उपकरण किसानों के घरों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक कार्य जैसे- घर की लिपाई-पोताई, साफ-सफाई, हाथ से धान बोआई, हंसिये से धान कटाई (लुअई) आदि अनेक कार्य सदियों से किसानों की दिनचर्या के अनिवार्य साधन बने हुए हैं. अर्थात मानव समाज के पारिवारिक व सामाजिक जीवन निर्वाह के प्रमुख कार्य आज भी (Anti-Clock Wise) प्रकृति की दी हुई वास्तविक विधान, परंपरा, आस्था और विश्वास के साथ कायम है. इस वास्तविक परंपरा के साथ आधुनिक मानवीय कार्यों की दिनचर्या में परिवर्तन हो सकता है, किन्तु इन परंपराओं को जाने-अन्जाने में भी त्याग पाना संभव नहीं है.



किसानों द्वारा धान मिंजाई का कार्य 

          वर्तमान समय में आधुनिक कृषि कार्य भी सामान्यतः सामान्य घड़ियों की घूमने की दिशा के विपरीत (Anti-Clock Wise) ही पूरे किये जाते हैं. ट्रेक्टर से खेत की जुताई, धान बोवाई, कटाई, मिंजाई एक सामान्य प्रक्रिया है. इन कार्यों को प्रारम्भ करने के वक्त आदमी किस दिशा से शुरू करेगा यह नहीं सोचता, किन्तु वह Anti-Wlock Wise ही शुरू करता है. यह प्रक्रिया अपने आप इसलिए होती है क्योंकि हमारा शरीर प्राकृतिक तत्वों से ही बना है, जिसमे प्रकृति की पूरी संरचनात्मक तत्व समाहित हैं. शरीर में संचारित होने वाली ऊर्जा पुकराल के ग्रहों-नक्षत्रो की ऊर्जा से प्रभावित है, जिससे अपने पथ की दिशा (Anti-Clock Wise) की ओर ग्रुत्वाकर्षण बल की तीव्रता ज्यादा संचारित होने के कारण कार्य करने वाले को इस दिशा की ओर घुमाने या कार्य करने में बल कम लगता है तथा सहजता महसूस होती है. यह भी सत्य है कि शरीर का बायां अंग दाहिने अंग से हमेशा कमजोर ही होता है. अर्थात शरीर की ऊर्जा भी कम दबाव की प्रतिपूर्ति हेतु अधिक दबाव से कम दबाव कि ओर ही बहती है. यही पुकराल अर्थात प्रकृति का नियम है.


(ख) सांस्कारिक कार्य घड़ी की विपरीत दिशा (Anti-Clock Wise) में-


          मानव जीवन में संस्कारों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है. संस्कारहीन मानव को "मानुष" कहा जाता है. संस्कारहीन मानव पशु के समान है. बिना संस्कारों के मानव "प्राणी" मात्र है. आज का आधुनिक मानव समाज प्रकृति प्रदत्त संस्कारों को भी अपने विकासात्म स्वभाव के अनुरूप बदलते जा रहा है. मानव विकास का यह बदलता स्वरुप प्रकृति के साथ मानवीय संबंधों की दूरी और बढ़ाता जा रहा है, जिससे जीवनदायिनी पुकराल/सृष्टि/प्रकृति के प्रति मानव प्रेम धूमिल होता दिखाई देना उचित एवं लाजिमी नहीं है.


          गोंड आदिवासी समाज में जल-जंगल-जमीन और जीवन से जुडी प्रकृति के प्रति आस्था सदियों से रहा है और रहेगा. दुनिया के समस्त आदिवासियों की आस्था जल-जंगल-जमीन से आज भी जुड़ा हुआ है. इसलिए उनके आदिम संस्कारों में यह देखने में आता है कि गति करने वाले/गमन करने वाले/घूमने-घुमाने वाले या फेरे लगाने वाले सभी कार्य सामान्य घड़ी की चलने की विपरीत दिशा (Anti-Clock Wise) में ही संपन्न किये जाते हैं. यह भी सत्य है प्राणी या मनुष्य पहला कदम रखने के लिये अपना दाहिना पैर ही आगे बढ़ाता है. किसी भी कार्य के संपादन के लिए अपना दाहिना हाथ ही आगे बढ़ाता है. ऐसा क्यों होता है, हमने कभी गौर नहीं किया. यह प्रक्रिया हमारे शरीर को प्रकृति से प्राप्त सांस्कारिक विधानों का परिणाम ही कहा जा सकता है.


          गोंडवाना के सांस्कारिक देश भारत में दूल्हा-दुल्हन को सात फेरे लगवाकर विवाह कार्य संपन्न कराये जाते हैं. आज यह प्रथा भी प्रचलन में है कि दूल्हा-दुल्हनों को हार पहनवाकर या अंगूठी पहनवाकर या कोर्ट-कचहरी के दस्तावेजों में हस्ताक्षर करवाकर किसी भी तरह शादी-विवाह के बंधन में बाँध दिया जाता है, जिसे आत्मापूरित सामाजिक व सांस्कारिक बंधन/विवाह नहीं कहा जा सकता. इस तरह के विवाह को केवल असामाजिक परंपरा ही कहा जा सकता है. मनुष्य आज दिखावटी सम्मान और पैसे कमाने की आपा-धापी में सबकुछ भूलता जा रहा हैं या जानबूझकर अपने संस्कारों को त्याग रहा है. हमें यह भी ध्यान में रखना होगा कि सृष्टि की संरचना का अंश ही सम्पूर्ण मानव शरीर की संरचना है. सृष्टि ने सभी चर अचरों की अपेक्षा मनुष्य को बौद्धिक कुशलता की प्रकृति ज्यादा प्रदान किया है. इसलिए मानव तीव्र बौद्धिक क्षमता के कारण वह परिणाम को समझने में देरी नहीं करता. आज इस बौद्धिक क्षमता का उपयोग मनुष्य केवल और केवल अपने स्वार्थ हितों की पूर्ती के लिए ही कर रहा है. वह अपने शरीर की प्राकृतिक संतुलन का मोह भी छोड़ चुका है. ऐसी स्थिति में संस्कारों और पुकराल/प्रकृति के बारे से सोचना तो दूर की बात है. गोंड आदिवासी समुदाय के अलावा किन्ही अन्य समुदायों में प्राकृतिक संतुलन योजित संस्कारों का गंध भी नहीं आता, चाहे उनके सांस्कारिक धर्म हो या आस्था.


          गोंड आदिवासी समुदाय में गमन/गति/फेरे लेने वाले या घुमाने वाले सभी सांस्कारिक कार्य सामान्य घड़ी की चलने की दिशा के विपरीत दिशा (Anti-Clock Wise) में ही संपन्न होते हैं. आदिकाल से गोंडवाना संस्कृति के जनक पहांदी पारी कुपार लिंगों ने ७ वर्षों तक मानव समाज के सामजिक और सांस्कारिक पहलुओं पर गहन अध्ययन, चितन, मनन कर मानव को संस्कारित करने के लिए उसके जीवन अवस्था को चार चरणों (जन्म संस्कार, गोटुल संस्कार, विवाह संस्कार और मृत्यु संस्कार) में विभाजित कर प्रत्येक चरणों के लिए संस्कार विधान तैयार किये, जिसमे मानव जीवन के तीसरे चरण का संस्कार विवाह (मरमींग) संस्कार है. विवाह संस्कार के अंतर्गत मुख्य रूप से विवाह सूत्र में बंधने वाले युवक-युवती को नैतिकपूर्ण पारिवारिक, सामाजिक गृहस्थ जीवन जीने के लिए संकल्पित किया जाता है. इस संकल्प को पूरा करने के लिए अनुबंधन के तौर पर प्रकृति के पांच तत्वों के विधान तथा परिवार और मानव समाज के सगा सांस्कारिक विधानों का पालन करने के लिए दूल्हा-दुल्हनों को इस संस्कार के ईष्टदेव दूल्हा-दुलही देव प्रतीक (मंगरोहन) की Anti-Clock Wise सात फेरे लगवाकर संपन्न किये जाते हैं. गोंड आदिवासी समाज में Clock Wise बाईं से दाईं ओर विवाह के फेरे लेना समाज के प्राकृतिक, पारिवारिक, सामाजिक एवं सांस्कारिक व्यवस्थाओं के खिलाफ एवं वर्जित है. गोंडवाना समयचक्र की घूमने कि दिशा (Anti-Clock Wise) की सांस्कारिक व्यवस्था हमें पुकराल/प्रकृति के विधान/नियमों के साथ-साथ सामाजिक एवं सांस्कारिक जीवन जीने के लिए याद दिलाती है. सदियों बीत जाने के बाद भी सामाजिक संस्कार, खान-पान, व्यवहार आदि प्राकृतिक जीवन से जुड़े होने की वास्तविकता के कारण आज तक आदिवासी समाज प्रकृति के करीब बने रहने में कामयाब रहा है और रहेगा.



आदिवासियों का सामूहिक नृत्य 

          उपरोक्त के अलावा गोंड आदिवासी जीवन के अनेकानेक सांस्कारिक एवं सामान्य प्रक्रियाओं के उदाहरण हैं- जैसे मंडई-मेले में देव डांग का घूमना, आंगा देव, समूह नृत्य, मृत शरीर की अर्थी का पांच फेरा लगाना, देव कार्य, भोजन पूर्व पूर्वजों एवं देवी-देवताओं को भोजन अर्पण करते समय दाहिने हाथ में पानी लेकर दाएँ से बाएँ फेरे लगाना इत्यादि समस्त कार्य गोंडवाना समयचक्र की चलने की दिशा अर्थात Anti-Clock Wise ही संपन्न होते हैं.


(ग) यांत्रिक कार्यों का अंतिम परीणाम घड़ी के विपरीत दिशा (Anti-Clock Wise) में-


          सामान्यतः यह देखने में आता है कि जमीन पर गति या घूर्णन करने वाले यंत्रों के पहिये सामान्य घड़ी की चलने की विपरीत दिशा (Anti-Clock Wise) में ही घुमते हैं, जिसके कारण यन्त्र या मशीन आगे की ओर बढ़ते हैं. जमीन पर चलनेवाले मशीन चाहे छोटा हो या बड़ा. उनके मशीन के अंदर चाहे जितनी भी कलपुर्जे या गीयर लगे हों, उनका अंतिम परिणाम पुकराल में गतिमान गृहों-नक्षत्रो की घूमने की दिशा को ही इंगित करते हैं. यदि उनके कलपुर्जों को इसतरह व्यवस्थित किया जाय कि वे सामान्य घड़ी की विपरीत दिशा में चले तो यन्त्र की चलने की दिशा ही बदल जाती 


हेलीकाप्टर के पंखों का घूमना 

है और जमीन पर वह आगे बढ़ने के बजाय पीछे की ओर अर्थात (Clock Wise) ही चलेगा. मनुष्य के द्वारा बनाए गए जमीन पर घूर्णन करने वाले यंत्रों या हेलीकाप्टर अथवा हवाई जहाज के पंखों की घूमने की दिशा भी Anti-Clock Wise ही होती हैं, जिसके कारण आगे की हवा को काटते हुए तेजी से आगे बढ़ते हैं. यह सर्वमान्य सत्य हो गया है कि चाहे इन्शान हो या उनके द्वारा बनाए जाने वाले यन्त्र, सभी को पुकराल/सृष्टि अपने सांस्कारिक संबद्धता में ले ही लेता है. इसलिए मानव को पुकराल/प्रकृतिगत संस्कारों को जीवन में अपनाना ही श्रेयस्कर होगा. मेरा कहना यही है कि नैसर्गिक संस्कार मानव विकास के लिए बाधक हो ही नहीं सकते.


(३) नदी-नालों में आने वाली बाढ़ तथा वायु की प्रवाह से उत्पन्न भवंर (चक्रवात) की घूमने की दिशा (Anti-Clock Wise) में-



जल में उत्पन्न भंवर 

          यह सामान्य प्रकृति होती है कि बरसात के दिनों में होने वाली बारिस से नदी-नालों में पूर एवं बाढ़ की स्थिति मिर्मित हो जाती है. जलधारा के बहाव एवं थपेडों से उत्पन्न भवंर भी Anti-Clock Wise घूमती है.


          ढोंगसी (क्षेत्रीय नाम) नामक जल में रहने वाला एक छोटा, चपटा कीड़ा जिसके ऊपरी शरीर पर काला कवच रुपी पंख पाया जाता है, जल क्रीडा के समय एकल या समूह में पानी की ऊपरी तल पर बहुत तेज गति से गोलाकार रूप में जलक्रीड़ा करते हुए नजर आते हैं. ये जलचर हमेशा दाएँ से बाएँ की ओर घूमकर जलक्रीड़ा करते हैं.


          वायुमंडल में वायु के कम दबाव वाले क्षेत्र की ओर वायु के बहाव से उत्पन्न चक्रवात के भवंर की घूमने की दिशा Anti-clock Wise होती है. यह वायुमंडल में कम या अधिक दबाव को संतुलित करने कि लिए उत्पन्न प्राकृतिक प्रक्रिया है.


(४) प्रकृति में वनस्पति (लताएँ) एवं उनके स्पर्शकों के विकास तथा बढ़ने की प्रक्रिया (Anti-Clock Wise) में-


          जमीन अथवा पेड़ों पर उगने वाली लताएँ जिनके तनें सामान्यतः पतले एवं लचीले होते हैं, वे सभी किसी दूसरे तनें या लकड़ी आदि का सहारा लेकर बढ़ते या विकाश करते है. उनके रोमदार स्पर्शक सहारा देने वाले तने व लकड़ी को लपेट लेते हैं. उन लताओं में यह खास बात होती है कि वे हमेशा दूसरे तने या लकड़ी को दाएँ से बाएँ (Anti-Clock Wise) घूमकर लपेटते हैं. उनके रोमदार स्पर्शक व तने दोनों में यह प्रक्रिया प्राकृतिक रूप से संपन्न होती हैं. स्पर्शक वाले लताएँ अपने रोमदार या चिकने स्पशकों के माध्यम से तने को सहारा देते हैं. उनका तना हमेशा प्राकृतिक ऊर्जा प्राप्त करने के लिए सूर्य के प्रकाश की ओर बढ़ते हैं, जिससे उनके तने और उनपर लगने वाले फूल-फल के विकास के लिए पूर्णरूप से प्राकृतिक ऊर्जा मिलती है. जंगल में पाए जाने वाला सूकरकंद, अमरबेल आदि तथा साक-सब्जी के लिए उपयोग में लाये जाने वाले तोरई, करेला, बरबट्टी, सेम आदि की लताएँ इस प्राकृतिक प्रक्रिया का अनुगमन करने वाले अनेक उदाहरण हैं.


(५) पुरातात्विक अवशेषों में प्राप्त दाएँ से बाएँ (Anti-Clock Wise) घूमने वाले चक्र एवं फिरकियाँ-


प्राकृतिक चक्र/

जीवन चक्र 

          डॉ. मोती रावेन कंगाली की पुस्तक "सैंधवी लिपि का गोंडी में उद्वाचन" उद्धरित सैंधवी लिपि का सन्दर्भ मोहन जोदड़ों, हडप्पा, कालीबंग चहुदरों के पुरातात्विक अवशेषों में मिले हैं. उक्त अवशेषों में अंकित समस्त चित्र लिपियाँ सैंधव लिपियाँ हैं, जिन्हें दाईं से बाईं ओर गोंडी भाषा में उद्वाचन किया जाकर पढ़ा गया है. सैंधवी लिपि (मुद्राओं) में अंकित चक्र (फिरकियाँ) दाएँ से बाएँ (Anti-Clock Wise) घूमने की स्थिति को प्रदर्शित करते हैं.


          इस सृष्टि में ऊर्जा का प्रमुख स्त्रोत सूर्य है, जो पुकराल में स्थिर है. सूर्य के चारो ओर सभी ग्रह-नक्षत्र दाएँ से बाएँ (Anti-Clock Wise) घुमते हुए परिक्रमा करते हैं. चक्र की पंखुड़ियाँ भी इसी प्रकृतिगत सांस्कारिक दिशा में घूमने कि स्थिति को प्रदर्शित करती है. इस प्रकार सृष्टि में उदयमान या उदित होने वाले सभी ग्रह-नक्षत्र, तारे आदि की सूर्य की परिक्रमा करने की दिशा, लता, नार, बेल आदि की लिपटने कि दिशा, बाढ़ से उत्पन्न भंवर, चक्रवाती वायु की घूमने कि दिशा, घूमने वाले जीव, पशु, पक्षी, जमीन पर सरकने वाले प्राणी आदि इसी प्रकृति चक्र का अनुसरण करते हैं. इसलिय गोंड आदिवासी समाज इस Anti-Clock Wisw घूमने वाले प्रकृति चक्र को "पुकराल और प्राणियों का जीवन चक्र" मानते हुए देव स्थान में इसकी आकृति बनाकर पूजा करते हैं. इसके ठीक विपरीत दिशा को इंगित करने वाले चक्र को वर्तमान हिंदू मूल के लोग स्वास्तिक चक्र मानते हैं. इस प्रकार गोंडी तथा हिंदू मान्यताओं में मतान्तर स्पष्ट रूप से देखा और समझा जा सकता है.


          अतः उपर्युक्त प्राकृतिक, जीवीय, वानस्पतिक संचलन की Anti-Clock Wise गतिविधियाँ तथा "गोंडवाना समयचक्र" का Anti-Clock Wise घूमना सृष्टिगत सिद्धांत है तथा इसी सिद्धांत को सम्पूर्ण गोंड आदिवासी समाज द्वारा अपने सांसारिक एवं संस्कारिक जीवन व्यवहार में शामिल किया गया है. यही व्यवहार पुकराल के जीवन संचलन के अनुरूप प्रकृति के विधान के साथ पारंपरिक मानवीय जीवन जीने का अनंतकालिक जीवन सिद्धांत है.


          प्राकृतिक सिद्धांतों के आधार पर सृष्टि के ग्रह-नक्षत्रों, प्राकृतिक सिद्धांतों/तत्वों के प्रभाव एवं वातावरण को संतुलित करने हतु विभिन्न प्राकृतिक प्रक्रियाओं को मानव अपने सांस्कारिक जीवनचर्याओं में समाहित करते हुए मानवीय जीवन जीने के साथ ही साथ जीवन की सही दिशा तय करने की प्रेरणा के लिए इस समयचक्र (घड़ी) को Anti-Clock Wise घुमाकर गोंड आदिवासी समाज के प्रकृतिवादी मूल सामाजिक संस्कारों का प्रदर्शन किया गया है. इस तरह सामान्य घड़ी की दिशा Clock-wise के विपरीत दिशा में गोंडवाना समयचक्र (घड़ी) की दिशा Anti-Clock Wise प्राकृतिक संस्कारों का दर्शन समस्त मानवीय संस्कारों का मूल दर्शन है.


          समयचक्र (घड़ी) का मतलब समय दिखाना ही नहीं होना चाहिए. समय दिखाने के साथ ही साथ इसमें मानवीय नैतिक जीवन मूल्यों के मार्गदर्शन का प्रतीक भी होना चाहिए, जिसको देखने से हमें अपनी भावनाओं को संयमित करने में मदद मिले. इस भावना को लेकर गोंडवाना घड़ी में "सल्लें गांगरे" के स्वरुप को मध्य में स्थापित किया गया है. सल्ले गांगरे आदिवासी समाज ही नहीं सम्पूर्ण मानव समाज के कल्याण के लिए प्राकृतिक जीवन के मूंद सूल मार्ग (त्रैगुण मार्ग) के स्वरुप में प्रकृति सम्मत सांस्कारिकता का दर्शन है, जो मानव समाज को सृष्टि के अस्तित्व की तरह लंबी आयु के साथ ही साथ निःस्वार्थ, संतोषपूर्ण, सुखी एवं समृद्ध जीवन जीने की प्रेरणा देती है.


          सृष्टि के समस्त ग्रह-नक्षत्रों के द्वारा अपनी धुरी पर करोडों वर्षों से नैमित्यिक संचलन किया जाना सृष्टि का विधान और संस्कार है. यह अनंतकाल तक बना रहेगा तभी सृष्टि का अस्तित्व भी बना रहेगा. इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि सृष्टि की नैमित्यिक संचलन की गति विचलित हो जाए या दूसरी दिशा की ओर संचलन करने लगे तो इस सृष्टि का विनाश ही हो सकता है. इसलिए गोंडवाना के महामानवों ने समस्त सृष्टिगत तथा सृष्टि की उत्पत्तिकारक शक्तियों एवं उनके अनंतकालिक जीवन संचलन के तथ्यों का सूक्ष्म एवं वैज्ञानिक शोध/परीक्षण कर मानव जीवन के संचालन हेतु सांस्कारिक विधान तैयार किए. इन्ही सांस्कारिक विधानों को पल-पल याद दिलाकर मानवीय संस्कारिक विधानों के भटकाव को रोकने के लिए "गोंडवाना समयचक्र" का निर्माण सम्पूर्ण मानव समाज को दिया जाने वाला प्रकृति से संबद्द बौद्धिक, चारित्रिक एवं संस्कारिक सन्देश हैं.


          पृथ्वी की प्राकृतिक सम्पदा का मालिक कहलाने वाला मानव समाज सृष्टिगत सांस्कारिक बंधन में बंधे होने के कारण अब तक कल्याणकारी मानवीय जीवन संस्कारों को अस्तित्व में रख पाया है, जिसे वह कभी तोड़ने का साहस भी नहीं कर सकता. महामानव पहांदी पारी कुपार लिंगों द्वारा स्थापित सांस्कारिक क्रमबद्धता में विकृति मानव सांस्कारिक जीवन के पूर्व जीवन में पुनर्वापसी का संकेत होगा. आदिम मानव समाज अपने सांस्कारिक मार्ग को त्यागकर विकास के नाम पर स्वार्थसिद्धि की स्पर्धा में कभी शामिल नहीं हुआ, जिसके कारण विकास के नाम पर आदिम जनजातियों के तरफ बहने वाली कृत्रिम एवं विनाशकारी विकास की धारा से उनकी धैर्यता का बाँध अब तक नहीं भरा. वर्तमान मानव समाज पारिवारिक, सामाजिक एवं स्वार्थगत प्रतिस्पर्धात्मक विकास हेतु अमानवीय तरीके से निरंतर प्राकृतिक संसाधनों का चरम सीमा तक विनाश करने के लिए आगे बढ़ रहा है. सुविधा भोगी होने के कारण सुख-सुविधायुक्त जीवन शैली के निर्वाह हेतु हमेशा से प्राकृतिक संसाधनों, सिद्धांतों के विपरीत प्रकृति को क्षति पहुँचाने का कार्य करते आ रहा है. मानव द्वारा किया जाने वाला यह कार्य/व्यवहार सृष्टिगत जीवन जगत के लिए घोर प्राकृतिक विनाशकारी संकट पैदा करेगा. इस प्रकृतिगत विनाशकारी संकट के लिए वह स्वयं जिम्मेदार होगा.


          अतः सर्वसिद्ध है कि "गोंडवाना समयचक्र" सृष्टि की संरचना एवं संचलन कार्यों की प्रतिकृति है, जो प्राकृतिक संस्कृति, जलचरों की संस्कृति, थलचरों की संस्कृति, वानस्पतिक संस्कृति, मानव की सामाजिक संस्कृति एवं पृथ्वी पर घूर्णन करने वाले अथवा आकाश में उड़ने वाले यंत्रों के अंतिम परिणाम की वास्तविक दिशा का अनुगमन करने वाला अर्थात सम्पूर्ण मानव समाज के लिए उपयुक्त सृष्टि की सांसारिक एवं सांस्कारिक संचलन की प्रक्रिया को प्रदर्शित करने वाला पवित्र "यात्रिक ग्रन्थ" है.


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