कोयतुर आदिवासी यो को उनकी भाषा से दूर करने के लिए पहले गैर आदिवासी जिसके चलते कोयतुर आदिवासी की मातृभाषा अपना अस्तित्व खो चुकी हैं और कुछ खोने के लिए तैयार हैं। यदि हम बात करे गोंडी भाषा की मारिया गोंडी और भी उपाधि दिए हुए जाती की जिनकी भाषा मिलती जुलती है एक ही है भाव एक ही है भाषा उनमें हिंदी , संस्कृत, अंग्रेजी, के शब्द ज्यादा मिल गए हैं।
इसी तरह यदि हम कोयतुर आदिवासी की बात करें तो उनमें अंग्रेजी और हिंदी , , संस्कृत भाषा के शब्दों का प्रचलन बढ़ गया है। गोंडी भाषा तो लगभग हिंदी ,अंग्रेजी , संस्कृत होती जा रही है। यदि गोंडी भाषा मरी तो कोयतुर संस्कृति स्वत: ही मर जाएंगी, ऐसे में कोयतुर और कोयतूर संस्कृति को बचाना और भी मुश्किल होगा। भाषा के बारे में यहां पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है। अत: थोड़ा लिखा है तो ज्यादा समझें।
कैसे बचाएं गोंडी - भाषा :
1. खुद बोलें और अपने बच्चों को अधिक से अधिक अपनी भाषा को सिखाएं। आप जिस भी क्षेत्र में रहते हैं गोंडी भाषा से प्रेम करें। वहां की गोंडी भाषा के रेला पाटा, मुहावरे, लोकोक्ति का जमकर प्रयोग करें। गोंडी भाषा खतरे से बाहर है यदि सारी पीढ़ियां उसका प्रयोग कर रही हैं और किसी और भाषा का दखल नहीं है तो। खतरा तब शुरू होता है जबकि एक ही परिवार, समाज या समूह के ज्यादा बच्चे अथवा परिवार संबंधित मातृभाषा भाषा पहली भाषा के तौर पर बोलते हैं और कुछ नहीं बोलते और यह प्रयोग कुछ विशिष्ट सामाजिक घेरों तक सीमित हो जाता है।
जैसे वर्तमान में बालाघाट , मंडला, सिवनी, छिंदवाड़ा ,कुछ जिले हैं और कुछ राज्य 36 गड़ , महाराष्ट्र ,उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, बांग्लादेश,में रहने वाले अधिकतर परिवार के लोग अब गोंडी भाषा घर-या मौके झोके में गांव में ही बोलते हैं
और कुछ तो अब घर में भी नहीं बोलते हैं। इसी तरह वर्तमान में यह प्रचलन बढ़ने लगा है कि स्कूल, ओर कुछ एरिया , या पार्टी आदि में हिंदी, अंग्रेजी , संस्कृति बोलने का प्रचलन बढ़ने लगा है और यही चलता रहा तो आने वाले समय में गोंडी भाषा सिमटकर रह जाएंगी
🙏धन्यवाद 🙏
📝आपका अपना
जिला मीडिया प्रभारी बालाघाट GYP
सुबु रावेन गोंड
🙏सेवा 🙏 सेवा 🙏 सेवा💐 जोहार
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